शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

व्यंग्य--"घौटालों का यारों है अपना मज़ा"




घौटालों का यारों है अपना मज़ा
व्यवस्था दे रही इसमे अपनी रज़ा
करोडों खा जाओ तुम इस देश के
मिले बदले इसके मामूली सी सज़ा
सुरेश राय 'सरल'


(चित्र गूगल से साभार )

6 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आदरणीय "रूपचन्द्र शास्त्री मयंक" जी, आप को रचना पसंद आई, मेरे प्रयास को हौसला मिला. सह्रदय आभार आपका

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  2. देश का क़ानून यही है ... इसको बदलें सब मिल के तो बात बने ...

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    1. बड़ा फायदा ही फायदा है इस खेल मैं
      करोड़ों डालो जेब में ,चन्द साल जेल में
      सुर

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  3. क़ृपया शब्‍दों की गलती पर भी धयान दें। घौटालों को घोटालों कर लें। इसमे को इसमें कर लें।

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