मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

अंधेरे रिश्तों से मिटाओ तो बात बने


अंधेरे रिश्तों से मिटाओ तो बात बने
रोशनी दिलों तक फैलाओ तो बात बने
यहाँ तेल और बाती से न होगा उजाला
दिये मे अना को जलाओ तो बात बने
सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

चौथ के चंद्रमा का मन भी ललचता है


चौथ के चंद्रमा का मन भी ललचता है
रूप मे जो तेरे आज एक नूर बरसता है।

छननी का परदा आज दरमियाँ जो है
वे परदा तुझे देखने चांद भी तरसता है।

हैरान है आकाश देख के धरा पे रोशनी
माथे पे सुहाग का टीका जो दमकता है।

कानों मे आकर रस घोल जाती है पवन
कलाईयों पे तेरे कंगना जो खनकता है।

शायद तेरे ही श्रृंगार से ईर्ष्या है चांद को
तभी तुझे चिढ़ाने वो देर से निकलता है।

तेरे कठिन व्रत के आगे झुकती कायनात
सत्य सावित्री से तो यम भी लरजता है। (लरजना =भयभीत होना )

सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

कोई पैमाना नही ,मनुष्य की प्यास का



कभी खुशी कभी मातम ,है प्रमाण आस का
अहसास न देखता पद, आम और खास का

कभी एक बूंद काफ़ी, कभी समंदर भी कम
कोई पैमाना नही है ,मनुष्य की प्यास का

मिलता नही जिगरे सिंह,औढ़ लो चाहे खाल
भूलना औकात अपनी,कारण बने उपहास का

खुद को गर न खोज सके,तुम अपनी उम्र भर
फायदा क्या है भला,बता तेरी ऐसी तलाश का

स्वप्न गढ़े पीढीयों के ,कल का न भरोसा कुछ
जाने कब टूट जाये, बंधन तन से सांस का

जिसने सहा वही रहा , मूल यही है संसार का
ज्येष्ठ की तपिश मे खिले,फूल ज्यों पलाश का

रिश्तो को रखना हरा, सींच के प्रेम नीर से
ॠतु की अना से पड़ता, पीला रंग घास का

कानों मे रस घोलने , मिटा देता खुद को
छेद पाकर सीने मे , इक तुकड़ा बांस का

न खीँच डोर संबंधों की, अपने अभिमान से
टूटे न धागा सुरेश, प्रेम और विश्वास का

सुरेश राय 'सरल'
(चित्र गूगल से साभार )

रविवार, 13 अक्तूबर 2013

कर्म अपने जो रावण ने सुधारा होता


कर्म अपना जो रावण ने सुधारा होता
वंश का नाश उसे गर ना गवारा होता
पैर अंगद के भी यूं ही वह हिला देता
मन मे भी अगर राम को पुकारा होता
सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

सिर्फ प्रतीक पुतलों को न जलाया जाये


दशहरा पर्व अब इस तरह मानाया जाये
सिर्फ प्रतीक पुतलों को न जलाया जाये
सदियाँ बीती मिट सकी न बुराई अब तक
इस बार अंदर के रावण को जलाया जाये


विजयादशमी उत्सव मात्र नही एक प्रतीक हो
बुराई पर अच्छाई की जीत की एक सीख हो
अंत बुरा ही होता है हर एक बुराई का जग मे
यही संदेश पाये जो इस उत्सव मे शरीक हो

सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

हास्य व्यंग -"करो स्वागत की तैयारी कि वो सब आने वाले हैं"


करो स्वागत की तैयारी कि वो सब आने वाले हैं
नए कमरे भी बनवाओ जैल सब भर जाने वाले है

न्यायालय ने कहा है दोषी नहीं बच जाने वाले है
मंत्रि ,संत्री, व अफ़सर जैल की हवा खाने वाले हैं

बैंड बाजा भी बजवाओ ये देश की बैंड बजाने वाले है
उनको भी अंदर पहुंचाओ जो इनको बचाने वाले है

सिर्फ चंद रोटियों से क्या होगा ये करोड़ों खाने वाले है
घास आँगन मे लगवाओ ये चारा भी चाहने वाले हैं

संत इनको न बुलाओ ये धर्म को लजाने वाले हैं
बाँकी कैदियों को बचाओ ये प्रवचन सुनाने वाले हैं

सबक उन्हे सिखलाओ जो कानून को नचाने वाले है
घौटालों की रकम वापस मांगो ये सब पचाने वाले है

जनता उनसे पूछ रही जो कानून को बनाने वाले है
मात्र सजा से क्या होगा,क्या ये सुधर जाने वाले हैं ?

सक्त कानून बनवाओ फाँसी तक उनको ले जाओ
जो लाज लूटें ,कोख मे मारें या बहू जलाने वाले हैं
सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

विज्ञापन की महिमा जहाँ जेब से पैसे खेंचे जाते है


पुराना सामान भी नये पैक दिखाकर बेंचे जाते है
विज्ञापन की महिमा जहाँ जेब से पैसे खेंचे जाते है

सेल का पर्चा देख ग्राहक तो भीड़ से उमड़े जाते हैं
छूट का काँटा डाल ग्राहक मछली से पकड़े जाते है

ऑफर का लालच देकर माल गैरजरूरी बेंचे जाते है
ये बाज़ार की दुनियाँ जहाँ जेब से पैसे खेंचे जाते हैं

मुफ्त उपहारों के बडे सपने आँखों मे सेचें जाते है
मुफ्त के नाम पर छिपे रूप से पैसे खेंचे जाते है

जहाँ ग्राहक सिर्फ पैमेंट पाने तक ही पूजे जाते है
विज्ञापन की महिमा जहाँ जेब से पैसे खेंचे जाते है

सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

बिना माँ के साये बेनूर ये धरा रहे


तेरा एहसास मन मे सदा हरा रहे
स्मृतियों से तेरी जीवन ये भरा रहे
जन्नत से कम नहीं है आँचल तेरा
माँ के साये बिना बेनूर ये धरा रहे
सुरेश राय 'सरल'


(चित्र गूगल से साभार )

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

व्यंग्य--"घौटालों का यारों है अपना मज़ा"




घौटालों का यारों है अपना मज़ा
व्यवस्था दे रही इसमे अपनी रज़ा
करोडों खा जाओ तुम इस देश के
मिले बदले इसके मामूली सी सज़ा
सुरेश राय 'सरल'


(चित्र गूगल से साभार )

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

जिनसे महका सारा हिन्दुस्तान


आज के दिन दो फूल खिले थे
जिनसे महका सारा हिन्दुस्तान

सिर्फ चौराहों और दीवारों मे नही
अपने दिल मे दो इनको स्थान

एक ने अहिंसा को अपनाकर
वापस लाया हिन्द का मान

दूजे ने दिल से आवाज लगाई
जय जवान जय किसान

गाँधीजी व शास्त्रीजी ने दिलवाई
हिन्दूस्तान को जग मे पहचान
सुरेश राय 'सरल'


(चित्र गूगल से साभार )

पुरखों का ॠण




पुरखों का ॠण पितृपक्ष मे यूं उतार दो
कागों को भोज अर्घ मे जल की धार दो
मिलेगी संतृप्ति उनको आशीष आपको
गर घर के जिन्दा बुजुर्गों को भी प्यार दो
सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )