शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

"कहाँ से लाऊं?"




मन की बातें सुने जो, वो कान कहाँ से लाऊं?
ख्बाहिशें पूरी करे, वो वरदान कहाँ से लाऊं?

हो गये हैं कातिल अब, बागवान ही फूलों के
जो तुझे दे पनाह, वो गुलदान कहाँ से लाऊं?

जो था बेसकीमती कभी, जीने का उसूल था
कोंडियों मे बिक गया,वो ईमान कहाँ से लाऊं?

बढ़ रहे हैं आदमी मगर, इंसान हो गये हैं कम
सभी के काम आये, वो इंसान कहाँ से लाऊं?

बीत गई उम्र आधी, संजोते रहे घर मे सामान
दे सके सुकूने दिल, वो सामान कहाँ से लाऊं?

बँट गया मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारे और चर्च मे
सभी का हो एक, वो भगवान कहाँ से लाऊं?

गैरों की तरह पेश आते हैं, अब तो अपने भी
अपनों के बीच खोई वो पहचान कहाँ से लाऊं?

अब तो जारी होते हैं, नफरत भरे पैगाम ही
सौहार्द जो फैलाये वो फ़रमान कहाँ से लाऊं?

औपचारिकता सी बन गई, लवों पर झूठी हंसी
चेहरा तेरा खिला दे, वो मुस्कान कहाँ से लाऊं?

बजती हैं तालियाँ, अब तो फूहड़ सी बात पर
'सुरेश' हुनर सराहे, वो कद्रदान कहाँ से लाऊं?
© 'सुरS'

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