मंगलवार, 24 सितंबर 2013

मुझको भी जीवन का अधिकार दे हे माँ


यह एक अजन्मी बेटी भ्रूण की अपनी माँ से पुकार है. . .

मुझको भी जीवन का अधिकार दे हे माँ
ममता की मूरत का मुझे दीदार दे हे माँ

मुझमे तेरा अंश है मैं तेरी ही परछाई हूं
मुझको तू अपना सा ही आकार दे हे मां

अपने सपनों को माँ तो बेटी मे जीती है
अपने सपने अब तू साकार कर ले माँ

मैं तो हूं तन्हा यहाँ बस तू ही सहेली है
इस सहेली को जीवन उपहार मे दे माँ

न दुख की फिक्र मुझे न दर्द का है डर
दिल खोल अगर अपना तू प्यार दे माँ

जैसे तू चाहेगी वैसे रहना है मुझे मंजूर
बस मेरे जीवन को तू विस्तार दे हे माँ

जुल्मी जो रस्में है मुझे जीने नही देतीं
ऐसे रिवाजों को अब धिक्कार दे हे माँ

आज की बेटी क्या नही कर सकती ?
आजमाइश का मौका एक बार दे माँ

तू भी एक बेटी है तुझ पर भी कर्ज है
कर्ज इस तरह अपना उतार दे हे माँ

सुरेश राय 'सरल'


(चित्र गूगल से साभार)

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

"कहाँ से लाऊं?"




मन की बातें सुने जो, वो कान कहाँ से लाऊं?
ख्बाहिशें पूरी करे, वो वरदान कहाँ से लाऊं?

हो गये हैं कातिल अब, बागवान ही फूलों के
जो तुझे दे पनाह, वो गुलदान कहाँ से लाऊं?

जो था बेसकीमती कभी, जीने का उसूल था
कोंडियों मे बिक गया,वो ईमान कहाँ से लाऊं?

बढ़ रहे हैं आदमी मगर, इंसान हो गये हैं कम
सभी के काम आये, वो इंसान कहाँ से लाऊं?

बीत गई उम्र आधी, संजोते रहे घर मे सामान
दे सके सुकूने दिल, वो सामान कहाँ से लाऊं?

बँट गया मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारे और चर्च मे
सभी का हो एक, वो भगवान कहाँ से लाऊं?

गैरों की तरह पेश आते हैं, अब तो अपने भी
अपनों के बीच खोई वो पहचान कहाँ से लाऊं?

अब तो जारी होते हैं, नफरत भरे पैगाम ही
सौहार्द जो फैलाये वो फ़रमान कहाँ से लाऊं?

औपचारिकता सी बन गई, लवों पर झूठी हंसी
चेहरा तेरा खिला दे, वो मुस्कान कहाँ से लाऊं?

बजती हैं तालियाँ, अब तो फूहड़ सी बात पर
'सुरेश' हुनर सराहे, वो कद्रदान कहाँ से लाऊं?
© 'सुरS'

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

नवनिर्माण के स्वपन


व्यवस्था मे कमी को सदा हम क्यों कोसा करें?
नवनिर्माण के स्वप्न दिल मे क्यो न पोसा करें?
साकार होते हैं स्वप्न खुली आँख से जो देखे
जरूरी है सर्वप्रथम अपने आप पर भरोसा करें

हालात की क्यों सदा हम शिकायत करें?
उनको बदलनें के लिये क्यों न बगावत करें?
परिवर्तन की लहर उठेगी दरिया मे तभी
जो फेंक पत्थर दरिया के भीतर हरकत करें


©सुरS

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

मेरी प्रथम गज़ल - "हौसलों की हवा देना"


मान चिंगारी मुझे तुम,हौसलों की हवा देना
पर बेरुखी की धूल से,मुझको न दबा देना

दूर है मंजिल मेरी,रास्ते सूनसान है
रहनुमा हर कदम,तुम साथ सदा देना

लंबा है ये सफ़र,साथी सभी अनज़ान है
गर फिसल जाऊं कहीं,तुम हाथ सदा देना

जख़्म देगा ये जमाना,इसका यही उसूल है
जख़्म ये भरता रहे,हाथों से तुम दवा देना

आप ने जो भी मांगी,हर दुआ कबूल है
हुनर मेरा पलता रहे,दिल से ये दुआ देना

स्नेह की आस के,जलाये हैं चिराग मैनें
अहम की फ़ूंक से तुम,इनको न बुझा देना

मुर्झा जाते है पौधे,गर न सींचोगे उन्हे
रखना रिश्तों को हरा,इनको न सुखा देना

कोशिशें मैं करुंगा,उम्मीद पूरी कर सकूं
मेरी हरएक पहल पर,तुम अपनी रज़ा देना

मेरा वज़ूद तुम से है,तुम ही लिखने की वज़ह
तुम से जुद़ा'सुरेश'हो जाये,ऐसी न सज़ा देना

© सुरेश राय 'सुरS'

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

मुझको हिन्दी से बहुत प्यार हुआ है


"हिन्दी दिवस की शुभकामनायें"
हिन्दी को समर्पित मेरी कविता :

पूछो न कब, कैसे कहाँ, यार हुआ है ?
मुझको तो हिन्दी से बहुत प्यार हुआ है

क्यों न मैं इसे माथे पे सजा लूं ?
बिन्दी रुप इसका जब स्वीकार हुआ है

सुन्दर, मनोरम और ओजस्विनी है
जनगण पर इसका अधिकार हुआ है

तुलसी, कबीर और मीरा की आत्मा है
साहित्य की रचना इससे साकार हुई है

सहज,सरल , सुभाष्य और सुगम है
अपनाने मे इसको न इंकार हुआ है

उस संस्कृत की है ये लाड़ली बेटी
ग्रंथो मे समाहित जिससे सार हुआ है

इसने कल्पनाओ को भी रुप दिये है
काव्यों मे खूब इसका श्रंगार हुआ है

उन्मुक्त हुये विचार जैसे पंख लगे है
इसके बिन जीना बड़ा दुश्वार हुआ है

सात सुरों से भर देती है ये सरगम
सूने मन मे जैसे झन्कार हुआ है

सभी बहनों की है सखी सहेली
इसके संग उनका भी प्रचार हुआ है

अनमोल और अतुल्य है इसकी विधाऐं
इस पर तो फ़िदा सारा संसार हुआ है

अंग्रेजी से इसको तो बैर नही है
अतिथी का स्वागत हर बार हुआ है

व्यापार जगत ने भी है अब ये माना
बिन हिन्दी के संभव व्यापार नही है

व्यवहार मे जब से इसको बसा लिया है
नवऊर्जा नवचेतना का संचार हुआ है

आओ मिलकर सभी इसका प्रसार करें
हिन्दी हैं ,हमवतन है, हिन्दी से प्यार करे

कविराय मन की है यही अभिलाषा
फूले फले बने जन जन की भाषा
©सुरेश राय

शवगृह ने पाट दिए


जीते जी न कर सके, फॉसले मिटाने के हौसले
नफरत के रूप मे हमें, सियासत से जो थे मिले
पास पास लेटे हुए है , लेकिन लाश के रूप मे
शवगृह ने पाट दिए, आपस के वो सभी फॉसले
सुरS

नफरत के बीज़


पथरा गई सूख के आँखे, घरवाले इतना रोये है
जाने कितने जिगर के टुकडे शय्या मौत की सोये है
फ़सल से काटे गये बंदे , दोनो ही संप्रदाय के
नफरत के बीज़ देश मे ,हुक्मरानों ने ऐसे बोये हैं

सुरS

उन्माद मे न बहको यूं



उन्माद मे न बहको यूं शाज़िशों मे फस
हो सके तो बाँटों सभी मे सौहार्द का मधुरस
सांप्रदायिकता की डोरी को कसो न तुम ऐसे
फूट पडे लहूधार जो फट जायें नस नस
सुरS

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

अविलंब,पुख्ता हो न्याय


जाने कितनी निर्भया की
आत्मा न्याय की है प्यासी
मोक्ष इन्हे दिलाने को
दोषियों को जरूरी है फांसी

दुष्कर्म,हत्या का साहस
फिर नाबालिग की दलील क्यों?
जुर्म नही है ये छोटा
फिर सज़ा मे इनकी ढील क्यों ?

ऐसे घिनौने कृत्य पर
मौत की सज़ा है नाकाफी
भरोसा कानून से न उठे
हरगिज मिले न इन्हे माफ़ी

कानून के विद्वानों से
देश के हुक्मरानों से
न्याय के भगवानों से
विनती करे कविराय
अविलंब,पुख्ता हो न्याय

गलियों मे, मकानों मे
कार्यालयों मे, दुकानों मे
भीड़ मे, सूनसानों मे
बहू ,बेटीयाँ और नारियाँ
भयमुक्त हो आयें जायें

क्षीर द्रोपदी का हरने से
दुस्सासन भी कतरायें
सीता को छूने का दुस्साहस
रावण भी न कर पाये
सुरS

सोमवार, 9 सितंबर 2013

श्री गण राजदयाल


जन गण मे अनुराग बढाओ
सब मे सौहार्द्र भाव जगाओ
शिव गौरा के लाल
श्री गण राजदयाल

देश से संकट सारे मिटाओ
मन मे नवचेतना उपजाओ
हर लो हमारे काल
श्री गण राजदयाल

देवों के देव तनय
आप हो मंगलमुर्ती
दर्शन मात्र से होती
सब मनोकामनापुर्ती
नमन तुम्हे हर हाल
श्री गण राजदयाल

विघ्नहरण मंगलकरण
राखो हमे अपनी शरण
रिध्दी सिध्दी के नाथ
पधारों घर मेरे गजराज
दीन बंधु दीनदयाल
श्री गण राजदयाल. . . .
सुरS

रविवार, 8 सितंबर 2013

एक दीवाना ऐसा भी



देखा हमने एक दीवाना ऐसा, बेपनाह रोते हुये
एक आश दिल मे लिये, अश्रु मोती खोते हुये

पूछा हमने सबब रोने का, उसे मनाते हुये
राज़ खोला उसने, हमको ये समझाते हुये

वादा किया है सनम ने, आज आने का ख्वाब मे
भीग न जाये दामन उनका, अश्कों के तालाब मे

अश्कों की किश्मत है, आज नही तो कल बहना है
बहाकर इन्हे जगह बना लुं, उन्हे सुबह तक रहना है

अश्क तो मेरे अपने है, कल फिर भर आयेंगे
जगह नही थी अखियों मे, वो तो न कह पायेंगे

इश्क की पहली आजमाइश मे, उन्हे नही खोना है
गर आये न वो ख्वाब मे, तब भी तो मुझे रोना है

सुरेश राय सुरS

(चित्र गूगल से साभार )

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

अब सार्थक करो उपाय


मुद्रा बाजार मे है गिर रही, भारतीय रुपये की साख,
बैठे है अर्थशास्त्री सरकार संग, बंद किये हुये आँख,

“सोने” की चिडियाँ को, “गिरवी” के जाल से न पकडा जाये
गुलामी की जंजीर मे, देश को फिर से न जकड़ा जाये

घौटालों की रकम पर फिर ,जरा गौर फरमाया जाये
ठण्डी अर्थव्यवस्था को, उन पैसों से गरमाया जाये

विनय है इनसे सुरेश की, अब सार्थक करो उपाय,
विदेशों मे जमा जो काला धन, वो वापस आ जाये,

देश उबरे आर्थिक मंदी से “रुपया” भी मजबूती पाये,
अर्थव्यवस्था की डूबती नैया को, किनारा मिल जाये

सुरS

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

व्यंग कविता :- " पेंशन की टेंशन "


पेंशन के पेड़ को सींचा अंशदान से
फल मिलेंगे मीठे इसी अरमान से

सेवानिवृत्ति के बाद मिलेगी हमको पेंशन
तब भी होंगे आत्मनिर्भर, फिर कैसी टेंशन

बुढ़ापे मे भी न रहेगी कोई तंगी
पास पैसा तो तबियत भी चंगी

बेटा रखेगा सदा हमे अपने पास
परिवार मे बने रहेंगे तब भी खास

हो जायेंगे बृद्धआश्रम भी खाली
अपनों संग मनेगी होली दीवाली

बुजुर्ग न होंगे बोझ, न होंगे बेसहारा
पेंशन लगायेगी जीवन नैया किनारा

सुनहरे भविष्य के सपने ,ये हो गये तार तार
शेयर बाज़ार के हवाले करेगी पेंशन ये सरकार

अब आपके सपने भी, बाज़ार पर होंगे निर्भर
हर दिन शेयर की चिंता, जीवन कर देगी दूभर

घौटालों के देश मे हर पल,चिंता यही हमे सताऐगी
जाने कब अखबार मे ,पेंशन घौटाले की खबर आ जाऐगी
सुरS

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

" स्वयं मर्यादा गया भूल "


श्रध्दा का हुआ है शोषण,
शर्मिन्दा हुई है जन आस्था,
पथभ्रष्ट हुआ फिर एक संत,
भूला नैतिकता का रास्ता

मर्यादा सिखाने वाला,
स्वयं मर्यादा गया भूल,
फूलों से तौला जिसको,
चुभ गया बन कर शूल

भगवान सा पुजने वाला,
बन गया जग उपहास
स्तब्ध है भक्त सभी,
टूटा है उनका विश्वास

संत के व्याभिचार की,
धर्मसंसद ने की निंदा
शिष्या से दुराचार पर,
धर्मजगत है शर्मिंदा

एक पल मे ही खो दी,
जीवन भर की कमाई
कानून से बड़ा कोई नही,
बात समझ मे आई

षणयंत्र छिपा है घटना मे,
या फिर है सच्चाई ?
या पुन: प्रायोजित मिडिया ने,
सुर्खियाँ है कमाई ?

सुरS

सोमवार, 2 सितंबर 2013

व्यंग कविता :- " नेताओ का संग रुपया को भाया "


डालर तो बढ़ रहा,देश मे भ्रष्टाचार की तरह
रुपया गिर रहा, संसद मे शिष्टाचार की तरह

विदेशों मे काला धन हुआ,आचार की तरह
सरकार अभिनय कर रह, लाचार की तरह

बात दूर तक जानी थी, प्रचार की तरह
मन मे ही दब के रह गई,विचार की तरह

नेताओ का संग,रुपया को इतना भाया
गिरने मे ना हिचका, और न ही शर्माया

उन के उठने, सुधरने की उम्मीद हमें नही
हे खुदा, गिरे रुपया को तो उपर उठा सही

सुरS

रविवार, 1 सितंबर 2013

कविता : " मेरी तमन्ना "


बनुं मे उनके सुख का कारण, मुझसे कोई भूल न हो

उन बिन जीवन ऐसी बगिया, जहाँ एक भी फूल न हो

जिस दुआ मे नही वो शामिल, वो दुआ मेरी कबूल न हो

कलियों को उनकी राह बिछाउं, जिसमे एक भी शूल न हो

उनके लिये वहाँ घर बनाउं, जहाँ गली मे उडती धूल न हो

कर्ज सा हो उन पर मेरा प्यार, ब्याज बढ़े, कम मूल न हो

किश्ते वो सदा पूरी चुकायें, जीवन भर कर्ज वसूल न हो

विश्वास की डोर मे बंधे रहें हम, फरेब उनका उसूल न हो

समर्पण पुष्प से भरा हो दामन, स्वार्थ का उसमें बबूल न हो

सुरS

व्यंग कविता:- फिर भी सेक्युलर


धर्म का कोयला झोक , सांप्रदादिकता की भट्टी जलाते है

आराम से बैठकर फिर, उसमे वोट की रोटी पकाते है

जात पात का नमक मिल, नफरत का आचार बनाते है

धर्मनिरपेक्षिता की चादर ओढ़,सत्ता का घी खाते हैं

देखो सुरेश, ये फिर भी सेक्युलर कहलाते हैं

सुरS