मुझको भी जीवन का अधिकार दे हे माँ
ममता की मूरत का मुझे दीदार दे हे माँ
मुझमे तेरा अंश है मैं तेरी ही परछाई हूं
मुझको तू अपना सा ही आकार दे हे मां
अपने सपनों को माँ तो बेटी मे जीती है
अपने सपने अब तू साकार कर ले माँ
मैं तो हूं तन्हा यहाँ बस तू ही सहेली है
इस सहेली को जीवन उपहार मे दे माँ
न दुख की फिक्र मुझे न दर्द का है डर
दिल खोल अगर अपना तू प्यार दे माँ
जैसे तू चाहेगी वैसे रहना है मुझे मंजूर
बस मेरे जीवन को तू विस्तार दे हे माँ
जुल्मी जो रस्में है मुझे जीने नही देतीं
ऐसे रिवाजों को अब धिक्कार दे हे माँ
आज की बेटी क्या नही कर सकती ?
आजमाइश का मौका एक बार दे माँ
तू भी एक बेटी है तुझ पर भी कर्ज है
कर्ज इस तरह अपना उतार दे हे माँ
सुरेश राय 'सरल'
(चित्र गूगल से साभार)