प्याज अब बिना कटे ही रुला रही,
लाली टमाटर की अब नही भा रही
सरकार जनता को बहला रही
यही हाल कब तक रहना है ?
आप ही कहें मंत्रि जी, क्या कहना है ?
सब्जियों के दाम आसमान पर हैं,
यही चर्चा अब हर जुबान पर है
मंहगाई से जनता त्रस्त है
सरकार चुनावी तैयारी मे मस्त है
यही हाल कब तक रहना है ?
आप ही कहें मंत्रि जी, क्या कहना है ?
मंहगाई का दलालों से रिश्ता गहरा है
मंडी मे बिचोलियों का पहरा है
सरकार सुस्त, प्रशासन बहरा है
यही हाल कब तक रहना है ?
आप ही कहें मंत्रि जी, क्या कहना है ?
आम न रहे "आम" के लिये
लोग तरस रहे जाम के लिये
सेव तो घर मे एक ही कटता है
एक अनार सौ लोगों मे बटता है
यही हाल कब तक रहना है ?
आप ही कहें मंत्रि जी, क्या कहना है ?
मंत्रिजी बोले :
सब्जियों, फलों के जो भाव हैं
इसमे सरकार का प्रभाव है
आरोप हमे नही सहना है
सुनो, सरकार का यह कहना है कि
बारिश का मौसम आता है
संग कई बिमारियां लाता है
जो भी हरी सब्जियां खाता है
वह बीमार हो जाता है
फल,दवाईयों का खर्च उठा नही पाता है
इसलिये ये मंहगाई नही उपाय है
आप व्यर्थ ही करते हाय-हाय हैं
मानो न मानो तर्क सही है
सरकार का प्रयास यही है
हरी सब्जियां केवल वे लोग ही खांए
जो फलों व दवाईयों का खर्चा भी उठा पांए.
सुरेश राय सुरS
(चित्र गूगल से साभार )
सम समायिक सुन्दर भाव समाहित कविता के लिये बधाई सुरेश जी.
जवाब देंहटाएंइसी तरह लिखते रहिये. आप अपने ब्लोग को blog widits से सजा सकते है. गूगल पर खोज कर आप यह काम कर सकते हैं. मेरी आवश्कता हो तो मैं हाजिर हूं.
bahut bahut dhanyavad sir
हटाएंnc keep writing.............
जवाब देंहटाएंthanks dear
हटाएंNice & new very good, keep it up.
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanyabad sir.
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