रविवार, 3 नवंबर 2013

कैसी दीवाली, कैसा उत्सव आधा देश जब भूखा है


क्या हुआ जो मजबूर कर दिया हमे मुंह के छालों ने
मुंह मीठा कर दिया मीठी शुभकामना भेजने वालों ने

क्या हुआ जो खरीद न सका मैं दीवाली के दिये
घर मेरा रोशन कर दिया पडोसी दियों के उजालों ने

क्या हुआ जो रंग रोगन न कर पाया मै दीवारों मे
धूल सारी हटा दी घर की बरस के बादल कालों न

झूम रहे थे खुशियों मे सब फोड़ फ़टाखे अपने घर
सरहद पर झेली आतिशबाजी देश के वीर लालों ने

बाजारों मे बहता पैसा जब इतनी मंहगाई के बाद
हक कितनों के लील गये भ्रष्टाचार और घोटालों ने

कोई तरसा बताशों को कोई छांट मिठाई खाता है
उपहारों से घर भर दिया अफसरों का दलालों ने

कैसी दीवाली, कैसा उत्सव आधा देश जब भूखा है
मुझको सोने न दिये रात भर मन के इन सवालों ने
सुरेश राय 'सरल'
04-11-2013

(चित्र गूगल से साभार )

शनिवार, 2 नवंबर 2013

दोहे :- दीपावली पर


दीपों से जगमग हुआ, सारा ये संसार
धरा से तम मिटाने का , आया ये त्यौहार

पधारो घर माँ लक्ष्मी, संग पधारो गणेश
पूरी हो कामनाऐं , मिटे सारे कलेश

महालक्ष्मी आन बसो ,निर्धन के घर आज
धन वैभव के बिना अब , होत न पूरे काज

फूलझडियाँ खुशियों की , उमंग के फोडें बम
हर मन मे हो रोशनी , मिटे जीवन से तम

होंगे तब रोशन यहाँ , रिश्तो से अंधकार
अना जलाऐं दीप मे , बांटे सब मे प्यार
सुरेश राय 'सरल'

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

अंधेरे रिश्तों से मिटाओ तो बात बने


अंधेरे रिश्तों से मिटाओ तो बात बने
रोशनी दिलों तक फैलाओ तो बात बने
यहाँ तेल और बाती से न होगा उजाला
दिये मे अना को जलाओ तो बात बने
सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

चौथ के चंद्रमा का मन भी ललचता है


चौथ के चंद्रमा का मन भी ललचता है
रूप मे जो तेरे आज एक नूर बरसता है।

छननी का परदा आज दरमियाँ जो है
वे परदा तुझे देखने चांद भी तरसता है।

हैरान है आकाश देख के धरा पे रोशनी
माथे पे सुहाग का टीका जो दमकता है।

कानों मे आकर रस घोल जाती है पवन
कलाईयों पे तेरे कंगना जो खनकता है।

शायद तेरे ही श्रृंगार से ईर्ष्या है चांद को
तभी तुझे चिढ़ाने वो देर से निकलता है।

तेरे कठिन व्रत के आगे झुकती कायनात
सत्य सावित्री से तो यम भी लरजता है। (लरजना =भयभीत होना )

सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

कोई पैमाना नही ,मनुष्य की प्यास का



कभी खुशी कभी मातम ,है प्रमाण आस का
अहसास न देखता पद, आम और खास का

कभी एक बूंद काफ़ी, कभी समंदर भी कम
कोई पैमाना नही है ,मनुष्य की प्यास का

मिलता नही जिगरे सिंह,औढ़ लो चाहे खाल
भूलना औकात अपनी,कारण बने उपहास का

खुद को गर न खोज सके,तुम अपनी उम्र भर
फायदा क्या है भला,बता तेरी ऐसी तलाश का

स्वप्न गढ़े पीढीयों के ,कल का न भरोसा कुछ
जाने कब टूट जाये, बंधन तन से सांस का

जिसने सहा वही रहा , मूल यही है संसार का
ज्येष्ठ की तपिश मे खिले,फूल ज्यों पलाश का

रिश्तो को रखना हरा, सींच के प्रेम नीर से
ॠतु की अना से पड़ता, पीला रंग घास का

कानों मे रस घोलने , मिटा देता खुद को
छेद पाकर सीने मे , इक तुकड़ा बांस का

न खीँच डोर संबंधों की, अपने अभिमान से
टूटे न धागा सुरेश, प्रेम और विश्वास का

सुरेश राय 'सरल'
(चित्र गूगल से साभार )

रविवार, 13 अक्तूबर 2013

कर्म अपने जो रावण ने सुधारा होता


कर्म अपना जो रावण ने सुधारा होता
वंश का नाश उसे गर ना गवारा होता
पैर अंगद के भी यूं ही वह हिला देता
मन मे भी अगर राम को पुकारा होता
सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

सिर्फ प्रतीक पुतलों को न जलाया जाये


दशहरा पर्व अब इस तरह मानाया जाये
सिर्फ प्रतीक पुतलों को न जलाया जाये
सदियाँ बीती मिट सकी न बुराई अब तक
इस बार अंदर के रावण को जलाया जाये


विजयादशमी उत्सव मात्र नही एक प्रतीक हो
बुराई पर अच्छाई की जीत की एक सीख हो
अंत बुरा ही होता है हर एक बुराई का जग मे
यही संदेश पाये जो इस उत्सव मे शरीक हो

सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

हास्य व्यंग -"करो स्वागत की तैयारी कि वो सब आने वाले हैं"


करो स्वागत की तैयारी कि वो सब आने वाले हैं
नए कमरे भी बनवाओ जैल सब भर जाने वाले है

न्यायालय ने कहा है दोषी नहीं बच जाने वाले है
मंत्रि ,संत्री, व अफ़सर जैल की हवा खाने वाले हैं

बैंड बाजा भी बजवाओ ये देश की बैंड बजाने वाले है
उनको भी अंदर पहुंचाओ जो इनको बचाने वाले है

सिर्फ चंद रोटियों से क्या होगा ये करोड़ों खाने वाले है
घास आँगन मे लगवाओ ये चारा भी चाहने वाले हैं

संत इनको न बुलाओ ये धर्म को लजाने वाले हैं
बाँकी कैदियों को बचाओ ये प्रवचन सुनाने वाले हैं

सबक उन्हे सिखलाओ जो कानून को नचाने वाले है
घौटालों की रकम वापस मांगो ये सब पचाने वाले है

जनता उनसे पूछ रही जो कानून को बनाने वाले है
मात्र सजा से क्या होगा,क्या ये सुधर जाने वाले हैं ?

सक्त कानून बनवाओ फाँसी तक उनको ले जाओ
जो लाज लूटें ,कोख मे मारें या बहू जलाने वाले हैं
सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

विज्ञापन की महिमा जहाँ जेब से पैसे खेंचे जाते है


पुराना सामान भी नये पैक दिखाकर बेंचे जाते है
विज्ञापन की महिमा जहाँ जेब से पैसे खेंचे जाते है

सेल का पर्चा देख ग्राहक तो भीड़ से उमड़े जाते हैं
छूट का काँटा डाल ग्राहक मछली से पकड़े जाते है

ऑफर का लालच देकर माल गैरजरूरी बेंचे जाते है
ये बाज़ार की दुनियाँ जहाँ जेब से पैसे खेंचे जाते हैं

मुफ्त उपहारों के बडे सपने आँखों मे सेचें जाते है
मुफ्त के नाम पर छिपे रूप से पैसे खेंचे जाते है

जहाँ ग्राहक सिर्फ पैमेंट पाने तक ही पूजे जाते है
विज्ञापन की महिमा जहाँ जेब से पैसे खेंचे जाते है

सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

बिना माँ के साये बेनूर ये धरा रहे


तेरा एहसास मन मे सदा हरा रहे
स्मृतियों से तेरी जीवन ये भरा रहे
जन्नत से कम नहीं है आँचल तेरा
माँ के साये बिना बेनूर ये धरा रहे
सुरेश राय 'सरल'


(चित्र गूगल से साभार )

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

व्यंग्य--"घौटालों का यारों है अपना मज़ा"




घौटालों का यारों है अपना मज़ा
व्यवस्था दे रही इसमे अपनी रज़ा
करोडों खा जाओ तुम इस देश के
मिले बदले इसके मामूली सी सज़ा
सुरेश राय 'सरल'


(चित्र गूगल से साभार )

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

जिनसे महका सारा हिन्दुस्तान


आज के दिन दो फूल खिले थे
जिनसे महका सारा हिन्दुस्तान

सिर्फ चौराहों और दीवारों मे नही
अपने दिल मे दो इनको स्थान

एक ने अहिंसा को अपनाकर
वापस लाया हिन्द का मान

दूजे ने दिल से आवाज लगाई
जय जवान जय किसान

गाँधीजी व शास्त्रीजी ने दिलवाई
हिन्दूस्तान को जग मे पहचान
सुरेश राय 'सरल'


(चित्र गूगल से साभार )

पुरखों का ॠण




पुरखों का ॠण पितृपक्ष मे यूं उतार दो
कागों को भोज अर्घ मे जल की धार दो
मिलेगी संतृप्ति उनको आशीष आपको
गर घर के जिन्दा बुजुर्गों को भी प्यार दो
सुरेश राय 'सरल'

(चित्र गूगल से साभार )

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

मुझको भी जीवन का अधिकार दे हे माँ


यह एक अजन्मी बेटी भ्रूण की अपनी माँ से पुकार है. . .

मुझको भी जीवन का अधिकार दे हे माँ
ममता की मूरत का मुझे दीदार दे हे माँ

मुझमे तेरा अंश है मैं तेरी ही परछाई हूं
मुझको तू अपना सा ही आकार दे हे मां

अपने सपनों को माँ तो बेटी मे जीती है
अपने सपने अब तू साकार कर ले माँ

मैं तो हूं तन्हा यहाँ बस तू ही सहेली है
इस सहेली को जीवन उपहार मे दे माँ

न दुख की फिक्र मुझे न दर्द का है डर
दिल खोल अगर अपना तू प्यार दे माँ

जैसे तू चाहेगी वैसे रहना है मुझे मंजूर
बस मेरे जीवन को तू विस्तार दे हे माँ

जुल्मी जो रस्में है मुझे जीने नही देतीं
ऐसे रिवाजों को अब धिक्कार दे हे माँ

आज की बेटी क्या नही कर सकती ?
आजमाइश का मौका एक बार दे माँ

तू भी एक बेटी है तुझ पर भी कर्ज है
कर्ज इस तरह अपना उतार दे हे माँ

सुरेश राय 'सरल'


(चित्र गूगल से साभार)

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

"कहाँ से लाऊं?"




मन की बातें सुने जो, वो कान कहाँ से लाऊं?
ख्बाहिशें पूरी करे, वो वरदान कहाँ से लाऊं?

हो गये हैं कातिल अब, बागवान ही फूलों के
जो तुझे दे पनाह, वो गुलदान कहाँ से लाऊं?

जो था बेसकीमती कभी, जीने का उसूल था
कोंडियों मे बिक गया,वो ईमान कहाँ से लाऊं?

बढ़ रहे हैं आदमी मगर, इंसान हो गये हैं कम
सभी के काम आये, वो इंसान कहाँ से लाऊं?

बीत गई उम्र आधी, संजोते रहे घर मे सामान
दे सके सुकूने दिल, वो सामान कहाँ से लाऊं?

बँट गया मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारे और चर्च मे
सभी का हो एक, वो भगवान कहाँ से लाऊं?

गैरों की तरह पेश आते हैं, अब तो अपने भी
अपनों के बीच खोई वो पहचान कहाँ से लाऊं?

अब तो जारी होते हैं, नफरत भरे पैगाम ही
सौहार्द जो फैलाये वो फ़रमान कहाँ से लाऊं?

औपचारिकता सी बन गई, लवों पर झूठी हंसी
चेहरा तेरा खिला दे, वो मुस्कान कहाँ से लाऊं?

बजती हैं तालियाँ, अब तो फूहड़ सी बात पर
'सुरेश' हुनर सराहे, वो कद्रदान कहाँ से लाऊं?
© 'सुरS'

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

नवनिर्माण के स्वपन


व्यवस्था मे कमी को सदा हम क्यों कोसा करें?
नवनिर्माण के स्वप्न दिल मे क्यो न पोसा करें?
साकार होते हैं स्वप्न खुली आँख से जो देखे
जरूरी है सर्वप्रथम अपने आप पर भरोसा करें

हालात की क्यों सदा हम शिकायत करें?
उनको बदलनें के लिये क्यों न बगावत करें?
परिवर्तन की लहर उठेगी दरिया मे तभी
जो फेंक पत्थर दरिया के भीतर हरकत करें


©सुरS

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

मेरी प्रथम गज़ल - "हौसलों की हवा देना"


मान चिंगारी मुझे तुम,हौसलों की हवा देना
पर बेरुखी की धूल से,मुझको न दबा देना

दूर है मंजिल मेरी,रास्ते सूनसान है
रहनुमा हर कदम,तुम साथ सदा देना

लंबा है ये सफ़र,साथी सभी अनज़ान है
गर फिसल जाऊं कहीं,तुम हाथ सदा देना

जख़्म देगा ये जमाना,इसका यही उसूल है
जख़्म ये भरता रहे,हाथों से तुम दवा देना

आप ने जो भी मांगी,हर दुआ कबूल है
हुनर मेरा पलता रहे,दिल से ये दुआ देना

स्नेह की आस के,जलाये हैं चिराग मैनें
अहम की फ़ूंक से तुम,इनको न बुझा देना

मुर्झा जाते है पौधे,गर न सींचोगे उन्हे
रखना रिश्तों को हरा,इनको न सुखा देना

कोशिशें मैं करुंगा,उम्मीद पूरी कर सकूं
मेरी हरएक पहल पर,तुम अपनी रज़ा देना

मेरा वज़ूद तुम से है,तुम ही लिखने की वज़ह
तुम से जुद़ा'सुरेश'हो जाये,ऐसी न सज़ा देना

© सुरेश राय 'सुरS'

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

मुझको हिन्दी से बहुत प्यार हुआ है


"हिन्दी दिवस की शुभकामनायें"
हिन्दी को समर्पित मेरी कविता :

पूछो न कब, कैसे कहाँ, यार हुआ है ?
मुझको तो हिन्दी से बहुत प्यार हुआ है

क्यों न मैं इसे माथे पे सजा लूं ?
बिन्दी रुप इसका जब स्वीकार हुआ है

सुन्दर, मनोरम और ओजस्विनी है
जनगण पर इसका अधिकार हुआ है

तुलसी, कबीर और मीरा की आत्मा है
साहित्य की रचना इससे साकार हुई है

सहज,सरल , सुभाष्य और सुगम है
अपनाने मे इसको न इंकार हुआ है

उस संस्कृत की है ये लाड़ली बेटी
ग्रंथो मे समाहित जिससे सार हुआ है

इसने कल्पनाओ को भी रुप दिये है
काव्यों मे खूब इसका श्रंगार हुआ है

उन्मुक्त हुये विचार जैसे पंख लगे है
इसके बिन जीना बड़ा दुश्वार हुआ है

सात सुरों से भर देती है ये सरगम
सूने मन मे जैसे झन्कार हुआ है

सभी बहनों की है सखी सहेली
इसके संग उनका भी प्रचार हुआ है

अनमोल और अतुल्य है इसकी विधाऐं
इस पर तो फ़िदा सारा संसार हुआ है

अंग्रेजी से इसको तो बैर नही है
अतिथी का स्वागत हर बार हुआ है

व्यापार जगत ने भी है अब ये माना
बिन हिन्दी के संभव व्यापार नही है

व्यवहार मे जब से इसको बसा लिया है
नवऊर्जा नवचेतना का संचार हुआ है

आओ मिलकर सभी इसका प्रसार करें
हिन्दी हैं ,हमवतन है, हिन्दी से प्यार करे

कविराय मन की है यही अभिलाषा
फूले फले बने जन जन की भाषा
©सुरेश राय

शवगृह ने पाट दिए


जीते जी न कर सके, फॉसले मिटाने के हौसले
नफरत के रूप मे हमें, सियासत से जो थे मिले
पास पास लेटे हुए है , लेकिन लाश के रूप मे
शवगृह ने पाट दिए, आपस के वो सभी फॉसले
सुरS

नफरत के बीज़


पथरा गई सूख के आँखे, घरवाले इतना रोये है
जाने कितने जिगर के टुकडे शय्या मौत की सोये है
फ़सल से काटे गये बंदे , दोनो ही संप्रदाय के
नफरत के बीज़ देश मे ,हुक्मरानों ने ऐसे बोये हैं

सुरS

उन्माद मे न बहको यूं



उन्माद मे न बहको यूं शाज़िशों मे फस
हो सके तो बाँटों सभी मे सौहार्द का मधुरस
सांप्रदायिकता की डोरी को कसो न तुम ऐसे
फूट पडे लहूधार जो फट जायें नस नस
सुरS

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

अविलंब,पुख्ता हो न्याय


जाने कितनी निर्भया की
आत्मा न्याय की है प्यासी
मोक्ष इन्हे दिलाने को
दोषियों को जरूरी है फांसी

दुष्कर्म,हत्या का साहस
फिर नाबालिग की दलील क्यों?
जुर्म नही है ये छोटा
फिर सज़ा मे इनकी ढील क्यों ?

ऐसे घिनौने कृत्य पर
मौत की सज़ा है नाकाफी
भरोसा कानून से न उठे
हरगिज मिले न इन्हे माफ़ी

कानून के विद्वानों से
देश के हुक्मरानों से
न्याय के भगवानों से
विनती करे कविराय
अविलंब,पुख्ता हो न्याय

गलियों मे, मकानों मे
कार्यालयों मे, दुकानों मे
भीड़ मे, सूनसानों मे
बहू ,बेटीयाँ और नारियाँ
भयमुक्त हो आयें जायें

क्षीर द्रोपदी का हरने से
दुस्सासन भी कतरायें
सीता को छूने का दुस्साहस
रावण भी न कर पाये
सुरS

सोमवार, 9 सितंबर 2013

श्री गण राजदयाल


जन गण मे अनुराग बढाओ
सब मे सौहार्द्र भाव जगाओ
शिव गौरा के लाल
श्री गण राजदयाल

देश से संकट सारे मिटाओ
मन मे नवचेतना उपजाओ
हर लो हमारे काल
श्री गण राजदयाल

देवों के देव तनय
आप हो मंगलमुर्ती
दर्शन मात्र से होती
सब मनोकामनापुर्ती
नमन तुम्हे हर हाल
श्री गण राजदयाल

विघ्नहरण मंगलकरण
राखो हमे अपनी शरण
रिध्दी सिध्दी के नाथ
पधारों घर मेरे गजराज
दीन बंधु दीनदयाल
श्री गण राजदयाल. . . .
सुरS

रविवार, 8 सितंबर 2013

एक दीवाना ऐसा भी



देखा हमने एक दीवाना ऐसा, बेपनाह रोते हुये
एक आश दिल मे लिये, अश्रु मोती खोते हुये

पूछा हमने सबब रोने का, उसे मनाते हुये
राज़ खोला उसने, हमको ये समझाते हुये

वादा किया है सनम ने, आज आने का ख्वाब मे
भीग न जाये दामन उनका, अश्कों के तालाब मे

अश्कों की किश्मत है, आज नही तो कल बहना है
बहाकर इन्हे जगह बना लुं, उन्हे सुबह तक रहना है

अश्क तो मेरे अपने है, कल फिर भर आयेंगे
जगह नही थी अखियों मे, वो तो न कह पायेंगे

इश्क की पहली आजमाइश मे, उन्हे नही खोना है
गर आये न वो ख्वाब मे, तब भी तो मुझे रोना है

सुरेश राय सुरS

(चित्र गूगल से साभार )

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

अब सार्थक करो उपाय


मुद्रा बाजार मे है गिर रही, भारतीय रुपये की साख,
बैठे है अर्थशास्त्री सरकार संग, बंद किये हुये आँख,

“सोने” की चिडियाँ को, “गिरवी” के जाल से न पकडा जाये
गुलामी की जंजीर मे, देश को फिर से न जकड़ा जाये

घौटालों की रकम पर फिर ,जरा गौर फरमाया जाये
ठण्डी अर्थव्यवस्था को, उन पैसों से गरमाया जाये

विनय है इनसे सुरेश की, अब सार्थक करो उपाय,
विदेशों मे जमा जो काला धन, वो वापस आ जाये,

देश उबरे आर्थिक मंदी से “रुपया” भी मजबूती पाये,
अर्थव्यवस्था की डूबती नैया को, किनारा मिल जाये

सुरS

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

व्यंग कविता :- " पेंशन की टेंशन "


पेंशन के पेड़ को सींचा अंशदान से
फल मिलेंगे मीठे इसी अरमान से

सेवानिवृत्ति के बाद मिलेगी हमको पेंशन
तब भी होंगे आत्मनिर्भर, फिर कैसी टेंशन

बुढ़ापे मे भी न रहेगी कोई तंगी
पास पैसा तो तबियत भी चंगी

बेटा रखेगा सदा हमे अपने पास
परिवार मे बने रहेंगे तब भी खास

हो जायेंगे बृद्धआश्रम भी खाली
अपनों संग मनेगी होली दीवाली

बुजुर्ग न होंगे बोझ, न होंगे बेसहारा
पेंशन लगायेगी जीवन नैया किनारा

सुनहरे भविष्य के सपने ,ये हो गये तार तार
शेयर बाज़ार के हवाले करेगी पेंशन ये सरकार

अब आपके सपने भी, बाज़ार पर होंगे निर्भर
हर दिन शेयर की चिंता, जीवन कर देगी दूभर

घौटालों के देश मे हर पल,चिंता यही हमे सताऐगी
जाने कब अखबार मे ,पेंशन घौटाले की खबर आ जाऐगी
सुरS

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

" स्वयं मर्यादा गया भूल "


श्रध्दा का हुआ है शोषण,
शर्मिन्दा हुई है जन आस्था,
पथभ्रष्ट हुआ फिर एक संत,
भूला नैतिकता का रास्ता

मर्यादा सिखाने वाला,
स्वयं मर्यादा गया भूल,
फूलों से तौला जिसको,
चुभ गया बन कर शूल

भगवान सा पुजने वाला,
बन गया जग उपहास
स्तब्ध है भक्त सभी,
टूटा है उनका विश्वास

संत के व्याभिचार की,
धर्मसंसद ने की निंदा
शिष्या से दुराचार पर,
धर्मजगत है शर्मिंदा

एक पल मे ही खो दी,
जीवन भर की कमाई
कानून से बड़ा कोई नही,
बात समझ मे आई

षणयंत्र छिपा है घटना मे,
या फिर है सच्चाई ?
या पुन: प्रायोजित मिडिया ने,
सुर्खियाँ है कमाई ?

सुरS

सोमवार, 2 सितंबर 2013

व्यंग कविता :- " नेताओ का संग रुपया को भाया "


डालर तो बढ़ रहा,देश मे भ्रष्टाचार की तरह
रुपया गिर रहा, संसद मे शिष्टाचार की तरह

विदेशों मे काला धन हुआ,आचार की तरह
सरकार अभिनय कर रह, लाचार की तरह

बात दूर तक जानी थी, प्रचार की तरह
मन मे ही दब के रह गई,विचार की तरह

नेताओ का संग,रुपया को इतना भाया
गिरने मे ना हिचका, और न ही शर्माया

उन के उठने, सुधरने की उम्मीद हमें नही
हे खुदा, गिरे रुपया को तो उपर उठा सही

सुरS

रविवार, 1 सितंबर 2013

कविता : " मेरी तमन्ना "


बनुं मे उनके सुख का कारण, मुझसे कोई भूल न हो

उन बिन जीवन ऐसी बगिया, जहाँ एक भी फूल न हो

जिस दुआ मे नही वो शामिल, वो दुआ मेरी कबूल न हो

कलियों को उनकी राह बिछाउं, जिसमे एक भी शूल न हो

उनके लिये वहाँ घर बनाउं, जहाँ गली मे उडती धूल न हो

कर्ज सा हो उन पर मेरा प्यार, ब्याज बढ़े, कम मूल न हो

किश्ते वो सदा पूरी चुकायें, जीवन भर कर्ज वसूल न हो

विश्वास की डोर मे बंधे रहें हम, फरेब उनका उसूल न हो

समर्पण पुष्प से भरा हो दामन, स्वार्थ का उसमें बबूल न हो

सुरS

व्यंग कविता:- फिर भी सेक्युलर


धर्म का कोयला झोक , सांप्रदादिकता की भट्टी जलाते है

आराम से बैठकर फिर, उसमे वोट की रोटी पकाते है

जात पात का नमक मिल, नफरत का आचार बनाते है

धर्मनिरपेक्षिता की चादर ओढ़,सत्ता का घी खाते हैं

देखो सुरेश, ये फिर भी सेक्युलर कहलाते हैं

सुरS

शनिवार, 31 अगस्त 2013

"कौशिश तो दिल से एक बार कीजिये जनाब"


अवसरों की बंदरबाँट, ऐसे तो न कीजिये
मौका बराबर सभी को दीजिये जनाब

नफरत का जहर ,देश को ऐसे न दीजिये
हर धर्म का सम्मान आप कीजिये जनाब

चूमा है फांसी जिन्होने, खातिर-ए-वतन
शहीदों मे उन्हे शामिल तो कीजिये जनाब

मंथन मे मिला बिष हमें, अमृत सदा आपको
एक बार अमृत हमें , स्वयं बिष पीजिये जनाब

आदमी हैं ये, इन्हे कोई वस्तु न समझे आप
इस्तेमाल कर इन्हे न फेंक दीजिये जनाब

अपनी चूक को हादसे का नाम न ऐसे दीजिये
व्यावस्था मे ही बड़ा सुधार कीजिये जनाब

है अलग नियम, अलग कतार क्यो आपके लिये
"जन"जीवन की ठौकरें आप भी लीजिये जनाब

सोते हैं हम थक कर, फुटपाथ पर भी सुकून से
महलों मे तो कभी चैन से आप सो लीजिये जनाब

कल जो खडे थे साथ , बुरे वक्त पर आपके
मौकापरस्त का उन्हे नाम न दीजिये जनाब

आजमाता है वक्त , फितरत सभी की बार बार
दौगलों सा कोई काम तो न कीजिये जनाब

है खून का रंग एक, एहसासे दर्द भी एक सा
जख्म जात-पात के तो ,न दीजिये जनाब

बदलेंगे मंजर भी जरुर, "कविराय सुरेश" कहे
कौशिश तो दिल से एक बार कीजिये जनाब
सुरS

बुधवार, 28 अगस्त 2013

व्यंग गीत -एक पुकार : " तेरा बदल गया संसार "


चौसर का दाँव खैलें,गली गली दुस्सासन
मूक, बधिर भी हो गया, धृतराष्ठ का शासन

कैसे बचाऐं लाज अपनी, बेटियाँ और नारी?
तेरा बदल गया संसार, अब तो आजा कृष्ण मुरारी

भ्रूणहत्या के पाप का ,अब तो सहा न जाये दंश
अपनी ही कन्या को मारें, माँ-बाप बने है कंश

कैसे जन्मेंगी सुभद्रा,राधा,मीरा और सखियाँ सारी?
तेरा बदल गया संसार, अब तो आजा बाँके बिहारी

नाग कालिया खादी पहन, नाचें ता था थैया
मझधार मे डुबा रहे, अब इस जग की नैया

कौन नथैगा इनको, पार लगेगी दुनिया सारी?
तेरा बदल गया संसार, अब तो आजा तू गिरधारी

गीता सार भूल गये, रास लीला इनको प्यारी
धर्म को बेंच रहे पाखण्डी, बन के धर्माचारी

कर्म से पहले फल की चिंता, सबको हुई है भारी
तेरा बदल गया संसार, अब तो आजा कुंज बिहारी

आज के अर्जुन सब कुछ सहकर भी मौन हैं
कौन इन्हे याद दिलाये, "उठकर देख तू कौन है"?

हक के लिये करले अर्जुन, धर्मयुध्द की तैयारी
तेरा बदल गया संसार, अब तो आजा तू गिरधारी

मंहगाई डायन के आगे, जीना बड़ा है दुश्वार
खून के साथ रगों मे बहता, अब तो भ्रष्टाचार

कैसे हो इनका संहार , कैसे मिटेगी ये बिमारी?
तेरा बदल गया संसार, अब तो आजा कृष्ण मुरारी

दूध, दही की नदियाँ कहाँ, अब तो नदियों मे नही पानी
प्रकृति का मालिक बन करता, मनुष्य इससे मनमानी

सूखा, बाढ़ और भूकंप , अब है प्रलय की बारी
तेरा बदल गया संसार, अब तो आजा तू गिरधारी
सुरS

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

व्यंग कविता:- " खाद्य सुरक्षा या वोट सुरक्षा "


सपनों के सौदागर अब
बन गये देखो अन्नदाता
एक से छीना, दुजे को बाँटा,
इसमे क्या इनका जाता ?

तुम भी खाओ, हम भी खायें
अब तो खाने का कानून है
मिल बाँट कर खाने मे
मिलता बड़ा सकून है

तुम भी गाओ, हम भी गाऐं
"लाज" भले ही लुटती जाऐं

"खाना" को "सुरक्षा" पूरी
खाना न लुटने देंगे
गरीब बढें चाहे जितने
"गरीबी" न हटने देंगे

तुम भी खाओ, हम भी खाऐं
अब नही कोई मजबूरी है
चुनाव तक तुम्हे जिंदा रखना
हमारे लिये बहुत जरूरी है

"खाद्य सुरक्षा" या "वोट सुरक्षा"
फैसला तो वक्त ही सुनाएगा
किसकी पकैगी खिचडी?
कौन खाली पतीला बजाएगा?

नीयत और नीति से ,कितना इनका वास्ता ?
क्या पेट से होकर जायेगा, अब सत्ता का रास्ता ?

सुरS

सोमवार, 26 अगस्त 2013

व्यंग कविता:-" वेदों मे छिपा है राज़"


जब हो गये बेअसर, सारे सरकारी प्रयास
अर्थशास्त्री हुये व्यर्थ, जनता हुई निराश

शायद कोई उपाय मिले, यही मन मे लिये आश
जनता सारी पहुंच गई, धर्माचार्य बाबा के पास

बलिहारी बाबा आपकी, कोई तो दियो उपाय
मंहगाई से लड़ने का, मार्ग हमें दीजो सुझाये

धर्माचार्य बाबा ने कहा:
मैं तो सदा से कहता आया पर, मेरी बात तुम्हे समझ न आई
अब समझोगे ,क्यों मैं सदा भक्तों से था कहता, शाकाहारी रहो भाई

मंहगाई से निपटने का, वेदों मे छिपा है राज़
भोजन करो सात्विक, बिना "लहसुन", बिना "प्याज"

सुर'S'

रविवार, 25 अगस्त 2013

व्यंग कविता:- " काली थैली " The Black Bag




सब्जी मण्डी के द्वार पर, मुझे प्रशासन ने टोक दिया
काली थैली नही थी पास मेरेे , इसलिये रोक दिया

उन्होने खेद जताया, फिर अपनी मजबूरी बताया. . .

सरकार को आम जन की हुई है चिंता भारी
जब से लूट ली गई है, प्याज से भरी लॉरी

जनता को सुरक्षा देने की, सरकार की है भावना
क्योंकि आप की भी प्याज कि थैली, लुटने की है संभावना

सब्जी मण्डी को दिये गये है ये शक्त निर्देश
"वर्जित है लोगों का ,बिना काली थैली प्रवेश"

जो भी व्यापारी पारदर्शी थैली मे प्याज बेचता हुआ पकडा जायेगा
उस पर एक महीने की कैद और 100 "डॉलर" का जुर्माना आएगा

हमने पूछा:
इस उपाय से क्या समस्या खत्म हो जायेगी ?
क्या काली थैली मे प्याज नजर नही आएगी ?

जबाब़ मिला:
जब सरकार को नेताओ का "काला धन" नजर नही आया
फिर लुटेरों को काली थैली मे रखी प्याज कैसे नजर आएगी मेरे भाया

"काला धन", "काला बाज़ारी" अब काली थैली है
त्रासदी कितने तरह की, इस देश ने झैली है. . . .
सुर'S'

शनिवार, 24 अगस्त 2013

हास्य व्यंग कविता-" रुपया फाल हो गया "



कल शाम, मैं जब दफ्तर से घर आया
बडा विचित्र नजारा ,मैने घर पर पाया

देख नजारा मन मेरा, हो गया दुखिया,
टांक रहीं थी श्रीमति हमारी, साड़ी पर "रुपया"

मैने पूछा- प्रिये, ये क्या गजब ढा रही हो?
साड़ी पर ये रुपया क्यों टांके जा रही हो ?

वह बोली- कभी तो मुझे फैशन मे जीने दो,
आप मुंह हाथ धो लो, तब तक मुझको सीने दो

पता नही तुम्हे, फैशन ये कमाल हो गया
कल ही न्यूज मे सुना है "रुपया फाल" हो गया

सुर'S'

व्यंग कविता--" दामिनी-2 "



असुरक्षित मासूम बेटियाँ, असुरक्षित नारियाँ
हर तरफ दुराचार, दुष्कर्म,हत्या और दुश्वारियाँ
यही हाल कब तक रहना है, कहिये नेताजी ,क्या कहना है?

हर दिल मे आतंक, हर मन मे डर का साया है
दिल्ली का दंश, मुंबई ने दोहराया है
क्या कोई कड़ा कानून आपने बनवाया है?
यही हाल कब तक रहना है, कहिये नेताजी, क्या कहना है?

समाज़ मे सदमा,रुदन,क्रंदन और आक्रोश है
प्रशासन पर रोष, सरकार पर दोष है
यही हाल कब तक रहना है, कहिये नेताजी,क्या कहना है?

कहने को तो देश २१वीं सदी मे है
नारी की गरिमा , अब भी त्रासदी मे है
समाज सुधार के प्रयास, किंतु, परंतु, यदि, कदि मे हैं
यही हाल कब तक रहना है, कहिये नेताजी,क्या कहना है?

नेताजी बोले:
हम इस घटना की करते निंदा हैं
और अपने तर्क को करते जिंदा हैं

बात हमारी गहरी है
मुंबई तो एक फिल्मी नगरी है

यहाँ लोगो पर फिल्मी है असर
लोग फिल्मी जिन्दगी करते है बसर

यहां फिल्मों के सीक्वेल आते हैं
इसलिये ये ,घटना को दोहराते है

जैसे- डाँन-२, दबंग-२ आदि दोबारा आई है
ऐसे ही ,मुंबई के उन लडकों ने "दामिनी-२" बनाई है
सुर'S'

बुधवार, 21 अगस्त 2013

हास्य व्यंग कविता-"उपहार राखी का"



रक्षाबंधन पर घर मेरी बहना आई,
बांध के राखी उसने, प्यार की रस्म निभाई

बोला मैने उसे ,देख के उसका प्यार
बोलो बहना ,चाहिये तुम्हे क्या उपहार ?

देते हो उपहार सदा तुम मेरे मन का
कितना है ख्याल तुम्हे मेरी पसंद का

जुग जुग जिये मेरा प्यारा भाई
"डालर" मे हो अब तेरी कमाई

मांग रही है जो तुमसे ,तुम्हारी गरीब बहना
किसी से भी भाई, ये बात तुम न कहना

बहन थोड़ा सकुचाई, फिर खोला दिल का राज़,
उपहार मे दे दो भैया, सिर्फ दौ किलो "प्याज"।

सुर'S'

सोमवार, 19 अगस्त 2013

"अजन्मी बहन का भाई को संदेश"


अजन्मी कन्या भ्रूण की ,भाई को पाती. . .

हर बरस सावन का महीना आएगा
संग अपने राखी का त्यौहार लाएगा

खिल उठेंगी कलाई भाई की, रंग बिरंगी राखी से
लेकिन कुछ बदनसीबों की कलाई, सूनी ही रह जाएगी

सूनी कलाई तेरी ,जब तुझको चिढाएगी
हे भाई देखना, तुझे मेरी बहुत याद आएगी

बांध राखी, बहन भाई से रक्षा की करती है आश
रक्षा वचन देने का भाग्य, रहा न अब तेरे पास

ग्लानी और अफसोस से ,तेरा दिल भर आएगा
मेरे न होने का सबब, अगर तू जान जाएगा

तेरी(बेटे) चाहत मे ही , माँ-बाप ने ये दुष्कृत्य किया
भ्रूणावस्था मे ही मुझको मार, दुनिया से रुख़सत किया

जानती हुं, जीवन मे तेरे , रहेगी मेरी कमी
कम न होगी ऐसे मौकों पर, आँखों से तेरी नमी

भाई पर होता है कर्ज ,कि वो बहन का पाणिग्रहण करे
इस जनम मे तो हे भाई, तू ऋणी रह जाएगा

गम न कर, बेटी बनाकर, देना तू मुझको जनम
कन्यादान के कर्ज से, मुक्त तू हो जाएगा

भाई-बहन के पावन रिश्ते का सुख, वो न भोग पाऐंगे
जिनके माँ-बाप, कोख मे ही ,अपनी बेटी को मरवाऐंगे

बेटियों का जन्म, इस धरा पे, बेवजह नही है
ईश्वर का वरदान हैं, बेटियाँ सज़ा नही हैं

सुरS

हास्य व्यंग-"अब के सावन मेे "


आती थी ढेरों मिठाई, बहनों के लिये बडे उपहार
इन पर पडी है मंहगाई की मार, अब के सावन मे

जितने मे पहले मिल जाती थीं दर्जनों राखियां
उतने मे बिक रही राखियां चार , अब के सावन मे

पहले जाती थीं बहनें घर भाई के, बांधने रक्षाबंधन
भेजी हैं पोस्ट से राखी इस बार, अब के सावन मे

लगते थे झूले और मेले, हरयाली तीज पर
क्लब मे मनाया है तीज त्यौहार, अब के सावन मे

थी कभी "दौ टके" की नौकरी, सावन "लाखों "का ,प्यार मे,
हो गया है नौकरी से सस्ता प्यार, अब के सावन मे

हर तरफ हुआ करती थी, हफ्तों सावन की झड़ी
है कहीं सूखा, कहीं पर बाढ़, अब के सावन मे

नागपंचमी मनाते थे सभी, पिलाकर दूध नाग को
दूध लिये दिखी, नेताओ के घर लंबी कतार, अब के सावन मे

कहे सुरेश, मनचले मजनुओं से,
कि घर से बाहर निकलें न वो,
आ गया है राखी का त्यौहार ,अब के सावन मे
सुरS

शनिवार, 17 अगस्त 2013

सिर हमने झुकाया तो नही


"भारतीय सेना-देश का गौरव" की आवाज

सिर तुम हमारा काट ले गये,
सिर हमने झुकाया तो नही

पीठ पीछे वार किया तुमने,
सामने से हमे आजमाया नही

शेर हैं हम माँ भारती के,
गीदड़ सा जीना हमे आया नही

करते हैं सम्मान संविधान का हम,
सेना का ध्वज संसद मे लहराया तो नही

कहते है हम जो, करते है वही,
दोगलों मे नाम हमारा आया तो नही

शौर्य है परंपरा हमारी,
बुजदिली का तमगा हमने लगवाया तो नही

है गवाह इतिहास भी इस बात का,
बढ़ गये कदम जो आगे, पीछे उन्हे लौटाया नही

सीमा शर्तो का रखते है मान हम,
सीज फायर का उलंघन हमे कभी भाया नही

दे सकते है तेरी हर गफलत का जबाव ,
एक इशारा दिल्ली से अभी पाया तो नही.

अब सोच ले तू, जान कितनी तेरी मुश्किल मे है
सरफरोशी की तमन्ना फिर हमारे दिल मे है. . .
सुरS

व्यंग कविता-"यही हाल कब तक रहना है ?"


मंत्रिजी से हमने पूछा :

प्याज अब बिना कटे ही रुला रही,
लाली टमाटर की अब नही भा रही
सरकार जनता को बहला रही

यही हाल कब तक रहना है ?
आप ही कहें मंत्रि जी, क्या कहना है ?

सब्जियों के दाम आसमान पर हैं,
यही चर्चा अब हर जुबान पर है
मंहगाई से जनता त्रस्त है
सरकार चुनावी तैयारी मे मस्त है

यही हाल कब तक रहना है ?
आप ही कहें मंत्रि जी, क्या कहना है ?

मंहगाई का दलालों से रिश्ता गहरा है
मंडी मे बिचोलियों का पहरा है
सरकार सुस्त, प्रशासन बहरा है

यही हाल कब तक रहना है ?
आप ही कहें मंत्रि जी, क्या कहना है ?

आम न रहे "आम" के लिये
लोग तरस रहे जाम के लिये
सेव तो घर मे एक ही कटता है
एक अनार सौ लोगों मे बटता है

यही हाल कब तक रहना है ?
आप ही कहें मंत्रि जी, क्या कहना है ?

मंत्रिजी बोले :

सब्जियों, फलों के जो भाव हैं
इसमे सरकार का प्रभाव है

आरोप हमे नही सहना है
सुनो, सरकार का यह कहना है कि

बारिश का मौसम आता है
संग कई बिमारियां लाता है
जो भी हरी सब्जियां खाता है
वह बीमार हो जाता है
फल,दवाईयों का खर्च उठा नही पाता है

इसलिये ये मंहगाई नही उपाय है
आप व्यर्थ ही करते हाय-हाय हैं

मानो न मानो तर्क सही है
सरकार का प्रयास यही है

हरी सब्जियां केवल वे लोग ही खांए
जो फलों व दवाईयों का खर्चा भी उठा पांए.
सुरेश राय सुरS

(चित्र गूगल से साभार )